ऑटिज्म
Autism in Children in Hindi
ऑटिज्म क्या है?
विकास में बाधक होने वाली बीमारियों के समूह में ऑटिज्म एक है जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के नाम से भी जाना जाता है।
जब बच्चे को बात करने में या लोग क्या सोच रहे हैं या महसूस कर रहे हैं, समझने में दिक्कत हो, तो यह ऑटिज्म हो सकता है। इससे अपने आप में खोये बच्चों को इशारे, चेहरे के भाव, छूने यहां तक कि भाषा का जवाब देना तक मुश्किल हो जाता है।
ऑटिज्म के कारण
वैज्ञानिकों को ऑटिज्म होने का निश्चित कारण नहीं पता, लेकिन इसमें आनुवाशिंक और वातावरण की भूमिका होती है। खोचकर्ताओं ने कुछ जीन्स की संख्या की पहचान की है जो इस विकार से संबंधित है। इन असामान्यताओं से पता लगता है कि जब भू्रण का शुरूआती विकास हो रहा होता है तो दिमाग के सामान्य विकास को नियंत्रित करने वाले जीन्स में दोष होने के कारण ही ऑटिज्म हो सकता है।
ऑटिज्म से पीडि़त लोगों पर हई रिसर्च में उनके दिमाग के कुछ हिस्सों में अनियमितताएं पाईं गई हैं।
एक अन्य रिसर्च में ऑटिज्म से पीडि़त मरीजों के दिमाग में सेरोटोनिन या अन्य न्यूरोट्रांसमीटर्स का असामान्य स्तर पाया गया है।
ऑटिज्म के लिए माता–पिता जिम्मेदार है, इस थ्योरी को अस्वीकार कर दिया गया है।
क्या ऑटिज्म को रोका जा सकता है?
– अभी तक ऑटिज्म का सटीक कारण नहीं ज्ञात हो पाया है, ऐसे में इस सवाल का भी निश्चित जवाब नहीं है।
– हालांकि, यह पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान कुछ प्रकार के रसायनों से संपर्क में रहने से बच्चे में ऑटिज्म होने की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए डॉक्टर की सलाह के बिना गर्भावस्था के दौरान दवाइयां न लेना भी आवश्यक है।
– गर्भावस्था के दौरान एल्कोहिक पदार्थों के सेवन का परहेज भी आवश्यक है।
ऑटिज्म के सामान्य संकेत क्या हैं?
तीन प्रकार के विशेष व्यवहार हैं जिनसे ऑटिज्म को पहचाना जा सकता है।
- सामाजिक व्यवहार में मुश्किलें होना
– बचपन में, ऑटिज्म से पीडि़त बच्चा लोगों को किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं देगा और आस-पास की चीजों को छोड़ किसी एक वस्तु पर लंबे समय के लिए ध्यान केंद्रित कर लेगा।
– ऑटिज्म वाले बच्चों का सामान्य विकास होता है और फिर वापस चले जाते हैं व समाज के प्रति उदासीन हो जाते हैं।
– ऑटिज्म से पीडि़त बच्चे उनके नाम बुलाने पर प्रतिक्रिया नहीं देते और अक्सर लोगों के साथ आंखों का संपर्क बनाने में बचते हैं।
– उन्हें यह जानने में मुश्किल होती है कि दूसरे क्या सोचते हैं और महसूस करते हैं। क्योंकि वे सामाजिक संकेत, बात करने के तरीके या चेहरे के भावों को नहीं समझ पाते और उचित व्यवहार करने के लिए जरूरी, लोगों के चेहरे को नहीं देखते।
– उन्हें सहानुभूति नहीं होती।
– ऑटिज्म से पीडि़त बच्चों को यह नहीं पता होता कि दूसरे बच्चों के साथ कैसे खेला जाए।
– कुछ मरीज गाना गाने की कम आवाज में अपनी बात उनसे कहते हैं जो उनके साथ उनके पसंदीदा विषय के बारे में और रूचि के साथ बात कर रहा हो। ऐसा लगता है जैसे वो अपनी ही एक दुनिया में हो, एक बुलबुले में।
- मौखिक और अमौखिक संचार में होने वाली समस्याएं
– वे अन्य बच्चों की अपेक्षा बाद में बोलना शुरू करते हैं और मैं या मेरे की बजाय अपना नाम लेकर बातचीत करते हैं। बिगड़ा संचार, ऑटिज्म होने का सबसे जाना-पहचाना कारण है। - दोहराव या संकीर्ण व्यवहार, जूनूनी रूचियां
कई बच्चों में बार-बार हिलने या बालों को घुमाने जैसे दोहराव वाले व्यवहार शामिल होते हैं या फिर खुद को नुकसान पहुंचाने वाला व्यवहार जैसे काटने या सिर मारने जैसा व्यवहार करते हैं।
ऑटिज्म वाले बच्चों में दर्द सहने की संवेदनशीलता कम हो जाती है लेकिन ध्वनि, छूने, असामान्य उत्तेजना के लिए असामान्य संवेदनशील रहते हैं। गले लगाने पर विरोध करना, ये असामान्य प्रतिक्रियाएं व्यवहार संबंधित लक्षणों को पहचानने में योगदान दे सकती हैं।
आम गलतफहमी
– ऑटिज्म से पीडि़त बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त और महसूस नहीं कर सकते कि वे खुश हैं या दुखी
– कई लोग मौखिक रूप से अपनी बात कहने में अक्षम होते हैं जिसे मान लिया जाता है कि वे दोस्त नहीं बनाना चाहते।
– ऑटिज्म से पीडि़त बच्चे बौद्धिक रूप से अक्षम होते हैं। (जबकि तथ्य यह हैं कि ध्यान केंद्रित करने की योग्यता के कारण कई बच्चों का आई.क्यू सामान्य बच्चों से अधिक होता है।)
– बेकार देखभाल के कारण ऑटिज्म होता है।
थैरेपी
– ऑटिज्म के इलाज के लिए कोई विशेष दवा नहीं है लेकिन ऑटिज्म इंटरवेंशन प्लान से बच्चे के व्यवहार और संवेदी उपचार कर सुधार लाया जा सकता है।
– प्रत्येक ऑटिज्म वाले बच्चे या बड़े अलग होते हैं, इसीलिए प्रत्येक ऑटिज्म इंटरवेंशन प्लान को विशिष्ट योजनाओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
– शुरूआती गहन व्यवहार और संवेदी हस्तक्षेप में पूरा परिवार शामिल होता है जो पेशवरों की टीम के साथ मिलकर काम करता है। कई ऑटिज्म वाले लोगों अलग मेडिकल परिस्थितियां भी होती हैं जैसे स्लीप डिस्टर्बेंस, सीजरस और गेस्ट्रोइनटेस्टीनल डिजीज।
ऑटिज्म वाले बच्चों के साथ काम करने के टिप्स
– सुनिश्चित करें कि बोलकर और दिखाकर दिशा-निर्देशों को चरणबद्ध तरीके से दिये जाएं और उन्हें जरूरत पडऩे पर शारीरिक सहयोग भी दें।
– ऑटिज्म वाले लोगों को अक्सर चेहरे के भाव, बॉडी लैंग्वेज, आवाज को पहचानने में मुश्किल होती है। अपने निर्देशों को उसके सामने स्पष्ट करें।
– पता लगाएं कि मरीज की क्या खूबी हैं और उन पर जोर दें। उन्हें उस रास्ते ले जाएं और सफलता के अवसर बनाएं।
– सकारात्मक प्रतिक्रिया दें, काफी सारे अवसर देते हुए अभ्यास कराएं।
– उनकी नियमित दिनचर्या बनाए रखें। यदि आपको बच्चे दिनचर्या के परिवर्तन के बारे में पता है तो उसे पहले इस इस बारे में बताएं जिससे वह इस परिवर्तन के लिए पहले से तैयार हो जाए।